Sambhog Se Samadhi Ki Aur
By: Osho
जो उस मूलसà¥à¤°à¥‹à¤¤ को देख लेता है...’ यह बà¥à¤¦à¥à¤§ का वचन बड़ा अदà¤à¥à¤¤ है: ‘वह अमानà¥à¤·à¥€ रति को उपलबà¥à¤§ हो जाता हà¥...।’ वह à¤à¤¸à¥‡ संà¤à¥‹à¤— को उपलबà¥à¤§ हो जाता है, जो मनà¥à¤·à¥à¤¯à¤¤à¤¾ के पार है। जिसको मैंने ‘संà¤à¥‹à¤— से समाधि की ओर’ कहा है, उसको ही बà¥à¤¦à¥à¤§ अमानà¥à¤·à¥€ रति कहते हैं। à¤à¤• तो रति है मनà¥à¤·à¥à¤¯ की—सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ और पà¥à¤°à¥à¤· की। कà¥à¤·à¤£ à¤à¤° को सà¥à¤– मिलता है। मिलता है?—या आà¤à¤¾à¤¸ होता है कम से कम। फिर à¤à¤• रति है, जब तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ चेतना अपने ही मूलसà¥à¤°à¥‹à¤¤ में गिर जाती है; जब तà¥à¤® अपने से मिलते हो। à¤à¤• तो रति है—दूसरे से मिलने की। और à¤à¤• रति है—अपने से मिलने की। जब तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ तà¥à¤®à¤¸à¥‡ ही मिलना होता है, उस कà¥à¤·à¤£ जो महाआनंद होता है, वही समाधि है। संà¤à¥‹à¤— में समाधि की à¤à¤²à¤• है; समाधि में संà¤à¥‹à¤— की पूरà¥à¤£à¤¤à¤¾ है। ओशो